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अहे मोरा पिछुअड़ा लवँगिया के गछिया / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

अहे मोरा पिछुअड़ा<ref>पीछे, पिछवाड़े, मकान के पिछले भाग में</ref> लवँगिया के गछिया<ref>गाछ, पेड़</ref>।
लवँग चुअले<ref>चूता है</ref> सारी रात हे।
अहे लवँग चुनि चुनि सेजिया डँसवलों।
बीचे बीचे रेसम के डोरा हे॥1॥
अहे ताहि पइसि<ref>प्रवेश करके</ref> सुतले, दुलहा कवन दुलहा।
जउरे सजनवा केरा धिया हे।
अहे ओते ओते<ref>अलग हटकर, उधर</ref> सुतहु कवन सुगइ।
तोरा गरमी मोरा ना सोहाय हे॥2॥
अहे अतिना<ref>इतना</ref> बचनियाँ जब सुनत कवन सुगइ।
रोअत नइहरवा चलि जाय हे।
अहे मोरा पिछुअड़वा मलहवा रे भइया।
मोहि के<ref>मुझे</ref> पार उतारऽ हे॥3॥
अहे राति अमल<ref>समय</ref> बहिनी अतही<ref>यहीं</ref> गँवावऽ<ref>बिताओ, व्यतीत करो</ref>।
भोरे<ref>सवेरे</ref> उतारब पार हे॥4॥
अहे भला जनि बोलइ भइया, मलहवा भइया।
तोरो बोली मोहिं न सोहाय हे।
अहे चान<ref>चंद्रमा</ref> सुरुज अइसन अपन परभु तेजलों<ref>त्याग दिया</ref>।
तोहरो के सँग नहीं जायब हे॥5॥
अहे एके नइया आवले लवँग इलाइची।
दोसरे नइया आवे पाकल पान हे।
अहे तीसरे नइया आवलें ओहे पनखउका<ref>पान खाने वाला, यहाँ उसके पति से तात्पर्य है</ref>।
उनके साथ उतरव पार हे॥6॥

शब्दार्थ
<references/>