भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आ जाण र / सांवर दइया

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:50, 5 सितम्बर 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आ जाण र
करड़ा राजी हुया म्हैं
चर्रड़-चूं सूं छूट
करण लाग्या हवा सूं बातां
मिलाया नम्बर
अर कर ली बात
      बीं खूणै
अर अबै तो
बक्सै सांमै बैठ
देखां-सुणा
आखै जगत री हलगल

दो घर छोड़ र कुण रैवै
बूढै मां-बाप रै कांई है सोरप-दोरप
सगा-परसंगी कठै-किंयां है
आ जाण र
कांई करणो है म्हानै !