भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आ जैहो बड़े भोर दही लै के (कार्तिक स्नान का गीत) / बुन्देली

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:59, 18 दिसम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=बुन्देली }} <Poem> आ जैहो बड...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

आ जैहो बड़े भोर दही लै के, आ जैहो बड़े भोर।।टेक।।
नें मानो कुड़री धर राखो, मुतियन लागी कोर।
नें मानो मटकी धर राखो, सबरे बिरज कौ मोल।
नें मानो चुनरी धर राखो, लिख है पपीहरा मोर।
नें मानो गहने धर राखो, बाजूबंद हमेल।
चंद्रसखी भज बालकृष्ण छब, छलिया जुगलकिशोर।