भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आँसुओं को गिरने दो / लहब आसिफ अल-जुंडी / किरण अग्रवाल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:18, 30 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लहब आसिफ अल-जुंडी |अनुवादक=किरण अ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस साल
अब
मैं कितना इंतजार कर रहा हूँ वसंत का

नहीं
हमेशा की तरह नहीं
मैं ठंड से थक गया हूँ और सूरज की कामना करता हूँ

इस साल
यह अलग है
मैं बदलाव की चरम ताकत की लालसा कर रहा हूँ

मैं गवाह बनना चाहता हूँ
पृथ्वी के फटने का
लाखों तरीकों से धरती के हिलने का

मैं चाहता हूँ पुराना सब मर जाए
क्रान्तियाँ परिणत कर दें
कविताओं को फूलों में रक्त-सिक्त धूल से

इस साल
अब
मैं चाहता हूँ शांति का ही हिंसक जन्म हो

आँसुओं को गिरने दो
मृत्यु के मनमानी कर लेने के बाद
वसंत को दहाड़ने दो गरजती हुई नदी की तरह