भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आंख में भी पाणी हो / राजेश कुमार व्यास

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:57, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दादी कनै
एक कठोती ही
उण रै मांय पाणी लेय‘र
बा
न्हावती
न्हाण रै बाद
बच्यौड़े पाणी सूं कपड़ा धोवती।
पाणी
फेरूं भी
बच जावतौ
दादी
घर आळा ने
सूंप देवती बो पाणी
ओ कैवते-
‘मसोता कर लो
ई पाणी सूं...’
दादी रो पाणी
कदै नीं खूटतो
तद
आंख में भी पाणी हो
सब दादी रो कैवणों मानता।