भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आंखों की वीरानी पढ़ कर देखो ना / राज़िक़ अंसारी

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:36, 27 जनवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राज़िक़ अंसारी }} {{KKCatGhazal}} <poem> आंखों क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आंखों की वीरानी पढ़ कर देखो ना
क्या क्या टूटा दिल के अंदर देखो ना

लम्हा लम्हा रात कहाँ तक आ पहुंची
खिड़की से कमरे के बाहर देखो ना

क्या होता है दर्द छुपाने का अंजाम
तुम भी अपने अांसू पी कर देखो ना

छोड़ के हमको तुम लोगों ने क्या पाया
सच्चाई से आंख मिला कर देखो ना

शायद मेरे आंसू तुम को रोक सकें
फिर मुझको इक बार पलट कर देखो ना