भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आंण-जांण / चंद्रप्रकाश देवल

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:01, 17 जुलाई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्रप्रकाश देवल |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

थारै सिधायां पूठै
रैय जावै म्हारै रतन आंगणै
थारी छूट्योड़ी सुंगधी छींयां रौ पसार
कंकू वरणा पगल्या जोय
म्हैं व्है जावूं आक-बाक

थूं आई
तौ पछै पगमंडणा रै मिस पाथर्योड़ौ मन
कोरौ कीकर छूटग्यौ

ओळूंपगी!
अैड़ा कांई पगल्या धरै
के आंण-जांण री ठाह ई नीं पड़ै
अर बायरी खासी ताळ धूजबौ करै।