भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आई कुलफी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:26, 28 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अम्मा अपने बटुये में से,
कुछ तो नोट निकालो।

बाहर बिकने आई कुल्फी,
चार पाँच मँगवालो।

पापा के तो दाँत नहीं हैं,
तू भी न खा पाती।

तीन चार तो मैं खा लूँगा,
एक खायेगी चाची।

अम्मा बोलीं राजा बेटा,
बटुआ तो है खाली।

ज़रा देर पहले पापा ने,
कुल्फी चार मँगाली।

दो तो पापा ने खाली हैं,
मैंने भी दो खाई।

तुझे हुई है सरदी बेटा,
तुझको नहीं दिलाई।