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आकाश में मेरा दृश्य है- शून्य / शर्मिष्ठा पाण्डेय

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आकाश में मेरा दृश्य है- शून्य
पृथ्वी में मेरा अंश है- धूल
जल में मेरी नियति है- शुष्क
वायु में मेरा प्रभाव है- उष्ण
अग्नि में मेरा योग है- समिधा
दिशाओं में मेरा गंतव्य है- भ्रमित
यज्ञ में मेरा भाग है- राख
वेदों में मेरी हिस्सेदारी है- वर्जित
अवशेषों में मेरा प्रमाण है- अस्थि भंग
अंतरिक्ष में मेरा बल है- हीन
वनस्पति में मेरा हरापन है- जड़
क्यूंकि मेरी यही सहभागिता निश्चित करती है कि
'मैं एक स्त्री हूँ '