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आग ग़ज़लों को पिलाकर सर्दज़ाँ हो जाइए / विनय कुमार

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आग ग़ज़लों को पिलाकर सर्दज़ाँ हो जाइए।
छप गइ छ: सौ किताबे ओढ़ कर सो जाइए।

क्यों जलेंगे आप भी सीली लकिड़यों की तरह
सीकरी में धूप होगी सूखने को जाइए।

लीजिए यह खास लोगों का इलाका आ गया
खास लोगों की उमड़ती भीड़ में खो जाइए।

पेट से निकले समाये पेट में ये कमनसीब
ये कहीं जाते नहीं इनके लिए तो जाइए।

आपको फिर ज़न्नते दिल्ली में बस जाने का हक़
लौटिए वापस न हरगिज़ इस दफ़ा जो जाइए।