भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आग्रह / संजय शाण्डिल्य

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:29, 17 फ़रवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय शाण्डिल्य |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब मान जाओ
इतना गुस्सा
इतनी उदासी
अब ख़त्म करो
आओ, हम फिर बैठें
और बतियाएँ

ऐसा क्यों नहीं हो सकता
कि एक प्रयास फिर से करें

इस अन्तिम प्रयास में
हम ज़रूर सफल होंगे
और यक़ीन करो
हर बार अन्तिम ही प्रयास में
मैं सफल हुआ हूँ

तो आओ,
इस अन्तिम के लिए
फिर से शुरुआत करें
और यह वादा है तुमसे
कि यदि हम असफल रहे

तो मुक्त हो जाएँगे एक दूसरे से
मेरी डाल से
तुम उड़ जाना सदा के लिए अनन्त में
मैं ख़ुद ही सूखकर ठूँठ हो जाऊँगा

वैसे,
मैं यह भी जानता हूँ, प्रिय !
न तुम उड़नेवाली हो कहीं
न मैं सूखनेवाला हूँ कभी ...