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आज की यह रात! / रामेश्वरलाल खंडेलवाल 'तरुण'

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आज की यह रात!
प्रचण्ड ग्रीष्म की चाँदनी में-
अंगूर-से मोतियों का कंठा पहने,
किसी ईरानी दुलहिन के लाल होठों से सटी
माणिक-मदिरा-भरी एक मरकत की प्याली-सी है!-
वह प्याली, -जिसमें शिखी-छत्र सी चौड़ी बरौनियों वाली
कजरारी आँखें
भी प्रतिबिम्बित हों,
और जिसकी मदिरा, यौवन की मांसल गंधमयी साँसों से
सिहर-सिहर कर रह जाय-
होठों के कगारों से टकराकर...

आज की यह रात!