भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज रात भरत / उगामसिंह राजपुरोहित `दिलीप'

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:11, 11 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उगामसिंह राजपुरोहित `दिलीप' |अनुव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भाई भरत इतरो क्यूं बदळ गियो है
ऐड़ो भी कांई होयो रीस सूं भरयो है
पैलां तो घणो ही भोळो थो
जणै कांई होयो आज!
थूं फिर गिया है।

थोड़ी जमीं थोड़ा पीसा
कांई आज इतरो मोटा होगिया
भाई सूं भाई लड़ दुसमी-वैरी होगिया
पै‘ली घणां ही राजी-बाजी हा
जणै कांई होयो आज!
थूं बदळ गियो है।

नैना हां जणै रमता सागै
पढणै भी जाता साथै-साथै
भेळा बैठ ही जीमता हा
हर टेम साथै रैंवता हा।

म्हनै तो अबार भी याद है
कोई कैवतो म्हनै खरो-खोटो
लड़ालाग जावतो हो थूं तो
थारो काळजो सहण कोनी कर पावतो
जणै भाई आज वो थारो जीव कठै है।