भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज्ञा लहि घनश्याम का चली सखा वहि कुंज / सुन्दरकुवँरि बाई

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:15, 31 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुन्दरकुवँरि बाई |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज्ञा लहि घनश्याम का चली सखा वहि कुंज।
जहाँ विराज मानिना श्री राधा-मुख पुंज॥
श्री राधा मुख-पुंज कुंज तिहि आई सहचरि।
वह कन्या को संग लिये प्रेमातुर मद भरि॥
कहत भई कर जोर निहोरन बात सयानिनि।
तजहु मान अब मान मो राखहु मानिनि॥