भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आठ बजे / हरिओम राजोरिया

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:55, 30 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिओम राजोरिया |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आठ बजने का मतलब क्या है
रोज़ ही बजते हैं आठ
अभी रात के तीन बजे है
अभी सुबह के आठ बज जाएँगे

एक रोग के वायरस की पूर्व पीठिका को
प्रतिदिन आठ बजे याद कीजिए
ठीक से सावधानियों का पालन कीजिए
माननीय को पूरी गम्भीरता से लीजिए
आठ बजे का इन्तज़ार कीजिए
और
धीरे से आठ को बज ही जाने दीजिए

नीन्द न आए तो आठ बजे से ही
नीन्द का इन्तज़ार कीजिए
रात के आठ और दिन के आठ का
फ़र्क करना भूल जाइए
काँख में दबीं घोषणाओं का
आदर कीजिए, तनिक सम्मान दीजिए
आठ बजे की स्मृति में कोई गीत लिखिए
आठ को आठ की तरह देखने का
प्रतिदिन सघन अभ्यास कीजिए

चाहो तो आप भी अपने
मन की बात मन में कर सकते हैं
आठ बजे अपना पक्ष रखिए
सुबह आठ तक कल्पनाओं के पँख फैलाइए
सिर दर्द को मत रोइए
लाल-लाल आँखों को पानी से धोइए
रात आठ से सोचना शुरू कीजिए
सुबह आठ तक सो जाइए
बाक़ी अपना ध्यान रखिए

मेहनत-मजूरी करने वाले लाखों लोग
अभी रास्ते में हैं
उन्हें रास्ते में ही रहने दीजिए
शुक्र मनाइए ऊपर वाले का
आप रास्ते में नहीं, घर में हैं
आपके पैरों में छाले नहीं
न पिण्डलियों पर पुलिस की लाठियों के नील
इतने छोटे जीवन में सुबह आठ बजे
आप अपने हाथ की बनी चाय पी रहे हैं
आपके सामने न पहाड़ - सा रास्ता है
न ही पहाड़ - सा इन्तज़ार
चैन से आठ को बज ही जाने दीजिए

सुबह आठ के बाद अब
रात के आठ की तो बात ही मत कीजिए ।