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आणो आयो रे पारीब्रम्ह को / निमाड़ी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

    आणो आयो रे पारीब्रम्ह को,
    आरे सासरिया को जाणो

(१) चलो म्हारा संग की हो सहेलीया,
    आपुण पाणी क चाला
    उंडो कुवो न मुख साकड़ो
    आन रेशम डोर लगावा...
    आणो आयो रे...

(२) चलो म्हारा संग की हो सहेलीया,
    आपुण बाग म चाला
    चंपा चमेली दवणो मोगरो
    फूल गजरा गुथावा...
    आणो आयो रे...

(३) चलो म्हारा संग की हो सहेलीया,
    आपुण शीश गुथावा
    कछु गुथा न कछु गुथणा
    मोतीयाँ भांग सवारा...
    आणो आयो रे...

(४) चलो म्हारा संग की हो सहेलीया,
    आपुण चोली सीलावा
    कछु सीवी न कछु सीवणा
    चोली अंग लगावा...
    आणो आयो रे...

(५) कहत कबीर धर्मराज से,
    साहेब सुण लेणा
    सेन भगत जा की बिनती
    राखो चरण आधार....
    आणो आयो रे...