भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आत्म-शोधन / नाथूराम शर्मा 'शंकर'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:49, 29 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= नाथूराम शर्मा 'शंकर' }} {{KKCatPad}} <poem> बिगड...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिगड़ा जीवन-जन्म सुधार
खेल न खेल मूढ़-मण्डल में, कर विवेक पर प्यार,
छल-बल छोड़ मोह-माया के, हितकर सत्य पसार।
बन्धन काट कड़े विषयों के, वश कर मन को मार,
अस्थिर भोग भोग मत भूले, सब को समझ असार।
छाक न छल से छीन पराई, बांट सुकृति-उपहार,
मत सोचे अपकार किसी का, करले पर-उपकार।
पल-भर भी भूले मत भाई, हरि को भज हर बार,
चेत, चार फल देगा तुझको, ‘शंकर’ परम उदार।