भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आनन्द का प्रशस्तिगान / मिरास्लाव होलुब / यादवेन्द्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:28, 11 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मिरास्लाव होलुब |अनुवादक=यादवेन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आप सचमुच प्यार तभी करते हैं
जब प्यार करते हैं बिला वजह...

रेडियो सुधारते हुए जब ख़राब निकल जाएँ दसियों पुर्जे
तब भी देखते रहें लगा-लगा कर दूसरे नए पुर्जे..
कोई बात नहीं चाहे तो दो सौ खरगोशों का जुगाड़ करें
यदि एक-एक कर मरते जाएँ सैकड़ों खरगोश...
दरअसल इसी को विज्ञान कहते हैं।

अब इसका भेद पूछते हैं आप
तो एक ही जवाब मैं हर बार दूँगा —
एक बार...दो बार...
बार-बार...

अँग्रेज़ी से अनुवाद : यादवेन्द्र