भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आरू जोतन लग्या गज मोंगर ओ / पँवारी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:38, 19 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=पँवारी |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पँवारी लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

आरू जोतन लग्या गज मोंगर ओ
आरू जोतन लगी नागर-बेलनि ओ
मऽ राऽ राजकुवर घरऽ माण्डोड।।
आरू जंगल नक्यो गज मोंगर ओ
आरू जंगल नकीऽ नागर-बेलनि ओ
मऽ राऽ राजकुवर घरऽ माण्डोड।।
आरू सिवान प आयो गज मोंगर ओ
आरू सिवान प आई नागर-बेलनि ओ
मऽ राऽ राजकुवर घरऽ माण्डोड।।
आरू गोठान प आयो गज मोंगर ओ
आरू गोठान प आयो नागर-बेलनि ओ
मऽ राऽ राजकुवर घरऽ माण्डोड।।
आरू गल्ली मऽ आयो हर्दया मोंगर ओ
आरू गल्ली मऽ आयी नागर-बेलनि ओ
मऽ राऽ राजकुवर घरऽ माण्डोड।।
आरू आँगन म आयेा हर्दया मोंगर ओ
आरू आँगन म आयी नागर-बेलनि ओ
मऽ राऽ राजकुवर घरऽ माण्डोड।।
आरू गड़न लग्या गज मोंगर ओ
आरू छावन लगी नागर-बेलनि ओ
मऽ राऽ राजकुवर घरऽ माण्डोड।।