भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आर्त-त्राण-परायण, सहज सुहृद / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:19, 16 दिसम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आर्त-त्राण-परायण, सहज सुहृद, करुणार्णव, परम उदार।
दीनबन्धु, पामर-‌उद्धारक, पावन पतित, अमित-दातार॥
अशरण-शरण, अकिंचनके धन, भयहर दया-समुद्र अपार।
मुझ-जैसे सपूर्ण पतितके लिये तुम्हीं, प्रभु! हो आधार॥
दीन-हीन मुझ अशरणको दे पावन चरण-युगलमें स्थान।
कर दो मुझे अभय अति निर्मल-चिा-चरित्र आशु भगवान॥
तनसे करूँ नित्य मैं सेवा, करूँ वचनसे नित गुण-गान।
सेवारत हों सभी इन्द्रियाँ, मन नित करे तुम्हारा ध्यान॥