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आव कविता बांच / मनोज पुरोहित ‘अनंत’

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होठां सूं निकळ
कानां तांई पूगी
कानां रै बाद
कठै गमगी कविता!

निरा सबद नीं है
म्हारी कविता
भीतर री लाय है
बळत है बरसां री
हाय है
मजूरां री-करसां री।
 
सोनल सुपना
रमै सबदां में
सबद उचारै राग
सुळगावै आग
जद रचीजै-कथीजै
कोई कविता
 
आव कविता बांच
मिलसी वा ई आंच ।