भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आवा लिखु आवरी / पँवारी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:47, 20 मार्च 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=पँवारी |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पँवारी लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

आवा लिखु आवरी
सुआ लिखु ओ मोर
समदिन तोरा गे कारण
जाग्या सारीऽ रात
आवा लिखु ओ आवरी
सुआ लिखु ओ मोर।।
आऊर लिखु गे कारन
आऊर जाग्या सारी रात।।
आवा लिखु ओ आवरी।।
सुआ लिख ओ मोर।।
समदिन तोरा कारण
जाग्या सारी रात।।