भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आशिक़ की भी कटती हैं क्या ख़ूब तरह रातें / सौदा

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:15, 15 मई 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आशिक़ की भी कटती हैं क्या ख़ूब तरह रातें
दो चार घड़ी रोना, दो चार घड़ी बातें

मरता हूँ मैं इस दुख से, याद आती हैं वो बातें
क्या दिन वो मुबारक थे, क्या ख़ूब थीं वो रातें

औरों से छुटे दिलबर, दिलदार होवे मेरा
बर हक़ है अगर पीरों, कुछ तुम में करामातें<ref>चमत्कार</ref>
 
कल लड़ गईं कूचे में आँखों से मेरी आँखें
कुछ ज़ोर ही आपस में दो दो हुई समघातें

इस इश्क़ के कूचे में ज़ाहिद तू सम्भल चलना
कुछ पेश न जावेंगी यहाँ तेरी मनाजातें<ref>प्रार्थनाएँ</ref>
 
सौदा को अगर पूछो अहवाल<ref>हाल
</ref> है ये उसका
दो चार घड़ी रोना, दो चार घड़ी बातें

शब्दार्थ
<references/>