भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आशीस / मनोज चारण 'कुमार'

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:08, 29 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज चारण 'कुमार' |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीवंतो रै बेटा,
भगवान हजारी उमर करै तेरी,
लागै जल्दी नोकरी,
आशीस मिल़ै जद दादी री,
म्हारो मन सपना देखण लागै,
सौ बरस जीणै रा,
ऊँचै औदै पर बैठण रा,
क्यूं'क
आशीसां झूठी नीं होया करै।
आशीसां
म्हारी माँ दिया करै,
रामजी निरोगो राखै तनै,
कमाई मोकळी हुवै,
तूं तरकी करै बेटा।
माँ रै मन री बात,
हियै आळी होठां आवै,
जद बेटै री निरोगताई खातर,
माँ राम राखङी गावै।
भगवती तेरै सागै रैवै,
हमेशा जीत हुवै तेरी,
दादोजी कैंवता हमेश,
आशीस रैती मुंडै पर,
पंपोळता मेरा केश।
पिताजी री तो कांई कैवूं,
कदेई कोनी दी आशीस,
मुंडै सै बोल कै,
पण म्हैं जाणूं,
बिंयारै हिवङै स्यूं निकल़ती
आशीसां बिना तोल कै।
चुपचाप निजरां,
गहरी दीठ
अर
गळती पर कडती झाळ,
राखती हमेश म्हानै संभाळ,
बापूजी री बा रीस,
बांकी तो बा ई ही आशीस,
आज लग म्हारै सामी चालै,
बण'र एक मशाल,
उजाल़ो है गेलै मैं,
अर बापू ईं उजाल़ै रा सुरजी।
आशीस तो म्हैं घणी लीनी,
गाँव आल़ै मिंदर मैं पुजारीजी,
गुवाङ मैं बैठ्योङा दादै री,
सामली पाङोसण दादी की,
दरूजै खङी भूरती गाय की,
काल़ीयै कुतियै की।
आज करण बैठूं जद
जमा-घटाव-जोङ,
तो सामनै आवै निचोङ,
बडेरा री आशीस
ही म्हारी पूंजी है,
बडकां का संस्कार अर आशीस,
मोक्ष की कूंजी है।।