भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इंसान होने का अर्थ / बाल गंगाधर 'बागी'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:27, 23 अप्रैल 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बाल गंगाधर 'बागी' |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमारे इंसान होने का अर्थ
तुम्हारे शब्दावली में जानवर भी नहीं
क्योंकि उसकी भी तुम पूजा करते हो
अपना सर उसके पैर पर रखते हो
हमें बद से बदतर समझकर
पैर नीचे रौंदकर
हमारी किस्मत लिखते हो
आज हमारे हाथ कलम हैं
मैं इससे किस्मत नहीं
इतिहास लिखूंगा
तुम्हारे खूनी दरिंदेपन का
दस्तावेज लिखूंगा

तुम्हारे कूटनीति का
कटु सत्य लिखूंगा
क्योंकि मैं!
दलित नहीं इंसान हूँ
इसीलिये बाग़ी हूँ...