भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इक सहमी सहमी सी आहट है / अहमद नदीम क़ासमी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:07, 7 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहमद नदीम क़ासमी }} {{KKCatGhazal}} <poem> इक सहम...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इक सहमी सहमी सी आहट है, इक महका महका साया है
एहसास की इस तन्हाई में यह रात गए कौन आया है

ए शाम आलम कुछ तू ही बता, यह ढंग तुझे क्यों भाया है
वोह मेरी खोज में निकला था और तुझ को ढूँढ के आया है

मैं फूल समझ के चुन लूंगा इस भीगे से अंगारों को
आँखों की इबादत का मैं ने बस एक ये ही फल पाया है

कुछ रोज़ से बरपा चार तरफ हैं शादी-ओ-ग़म के हंगामे
सुनते हैं चमन को माली ने फूलों का कफ़न पहनाया है