भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इतनी तो मेरी भी सुन लो ! / विजयदान देथा 'बिज्‍जी'

Kavita Kosh से
आशीष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:20, 1 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजयदान देथा 'बिज्‍जी' |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऊषे!
इतनी तो मेरी भी सुन लो

यौवन की अनुपम लाली पर
होकर उत्तेजित कामी दिनकर
किरणों को लेकर सैन्य-समूह
आ रहा तुम्हारे नव-अक्षत
यौवन को खोने!

स्वर्ण-श्रृंखला में कसकर
से सैनिक निष्ठुर
ले जाएँगे तुमको
अपने स्वामी के सम्मुख
लखकर उसकी भीषण कामानल
झुलस जाएगा
यह नूतन किसलय-सा
कोमल गात तुम्हारा
फिर सहन करोगी कैसे
उसका आलिंगन?
प्रतिक्षण पल-पल समय बीत रहा
लो आओ...!
रवि आने से पहिले
तुम मुझ में....
मैं तुम में मिल जाऊँ!

बोलो-बोलो री बाला
अपने अरुणिम अधरों से
कुछ तो नीरव स्वर में बोलो!

ऊषे!
इतनी तो मेरी भी सुन लो!
आओ रवि आने से पहिले
तुम मुझ में...
मैं तुम में मिल जाऊँ!