भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इश्क़ का कारोबार करते थे / चाँद शुक्ला हदियाबादी

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:46, 1 अप्रैल 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इश्क़ का कारोबार करते थे
ग़म की दौलत शुमार करते थे

क्या तुम्हें याद है या भूल गये
हम कभी तुमसे प्यार करते थे

काँटे भरते थे अपने दामन में
फूल उन पर निसार करते थे

बनके मजनू जुदाई में उनकी
पैरहन तार तार करते थे

अब तो बस इतना याद है के उन्हें
याद हम बेशुमार करते थे

याद में तेरी रात भर तन्हा
"चाँद" तारे शुमार करते थे.