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उच्च-पथ पर ऊँट / सिद्धेश्वर सिंह

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इस शीर्षक में
अनुप्रास की छटा भर नहीं है
न ही किसी ग़ैरदुनियावी दृश्य का लेखा
किसी तरह की कोई सतही तुकबन्दी भी नहीं
यदि कहूँ कि उसे कल सड़क पर देखा

सड़क पर ऊँट था
और उसके पीछे थी हर्षाते बच्चों की कतार
मैंने देखा
इसी संसार में बनता एक और संसार

अगर कविता लग रही हो
यहाँ तक कही गई बात
तो सुनें गद्य का एक छोटा-सा वाक्य -
            बच्चे अब भी पहचानते हैं ऊँट को
            क़िताब के पन्नों के बाहर भी

और हम...
हमें क़दम-क़दम पर दिखता है पहाड़
और आईने में झाँकने पर
अक्सर एक अदद ऊँट ।