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उठा तूफान / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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1
उठा तूफान
झरे मन के पात
लगा आघात।
2
छोड़ गए वे
विजन में अकेले,
रहे जो साथ।
3
उड़ी घनेरी
घमंड- भरी धूल
आँखों में चुभी।
4
सिन्धु हो तुम
मैं तेरी ही तरंग
जाऊँगी कहाँ ?
5
छोडूँगी कैसे!
चाहे चाँद बुलाए
लिपटूँ तुझे।
6
सिन्धु उदास
सो गई हैं लहरें
कोई न पास।
7
उदास तट
खो गई है आहट
अँधेरी रात।
8
छोड़ो न हाथ
घुमड़ी हैं घटाएँ
सम्बल तुम्हीं।
9
आँधी झकोरे
डाल- पात बिखरे
तुम्हीं समेटो।
10
लिपटी लता
लाख आएँ आँधियाँ
तरु के संग।