भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उड़ि चलु पंछी / रामवृक्ष राय 'विधुर'

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:03, 30 सितम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामवृक्ष राय 'विधुर' |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उड़ि चलु पंछी उहँवाँ, जहँवाँ सभकर भाग समान रे !
दया-धर्म के दियना जहँवाँ जगमग रोज जरेला,
धनिक-गरीब ऊँच-नीच सभ एकै संग रहेला,
दिनवाँ-रतिया गूँजे जहँवाँ सुख-सान्ती के गान रे !
उड़ि चलु पंछी उहँवाँ, जहँवा सभकर भाग समान रे !
जहाँ दईंत बनि ना अदमी के अदमी खून पियेला,
बकरी-बाघ एक घाटि पर, पानी जहाँ पियेला,
जहाँ लुका के ना मारे, केहू चिरई पर बान रे।
उड़ि चलु पंछी उहँवाँ, जहँवाँ सभकर भाग समान रे !
स्वारथ के मदिरा पी जहँवाँ पागल लोग न होला,
केहू घीव पीये ना, केहू अन्न बिना छछनेला।
उड़ि चलु पंछी उहँवें, ई ना रहे जोग स्थान रे !
उड़ि चलु पंछी उहँवाँ, जहँवाँ सभकर भाग समान रे !