भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उधर से आए तो फिर लौट कर नहीं गए हम / अहमद महफूज़
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:44, 21 मार्च 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहमद महफूज़ }} {{KKCatGhazal}} <poem> उधर से आए त...' के साथ नया पन्ना बनाया)
उधर से आए तो फिर लौट कर नहीं गए हम
पुकारती रही दुनिया मगर नहीं गए हम
अगरचे ख़ाक हमारी बहुत हुई पामाल
ब-रंग-ए-नक़्श-ए-कफ़-ए-पा उभर नहीं गए हम
हुसूल कुछ न हुआ जुज़ ग़ुबार-ए-हैरानी
कहाँ कहाँ तेरी आवाज़ पर नहीं गए हम
मना रहे थे वहाँ लोग जश्न-ए-बे-ख़्वाबी
यहाँ थे ख़्वाब बहुत सो उधर नहीं गए हम
चढ़ा हुआ था वो दरिया अगर हमारे लिए
तो देखते ही रहे क्यूँ उतर नहीं गए हम