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उधर से आए तो फिर लौट कर नहीं गए हम / अहमद महफूज़

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उधर से आए तो फिर लौट कर नहीं गए हम
पुकारती रही दुनिया मगर नहीं गए हम

अगरचे ख़ाक हमारी बहुत हुई पामाल
ब-रंग-ए-नक़्श-ए-कफ़-ए-पा उभर नहीं गए हम

हुसूल कुछ न हुआ जुज़ ग़ुबार-ए-हैरानी
कहाँ कहाँ तेरी आवाज़ पर नहीं गए हम

मना रहे थे वहाँ लोग जश्न-ए-बे-ख़्वाबी
यहाँ थे ख़्वाब बहुत सो उधर नहीं गए हम

चढ़ा हुआ था वो दरिया अगर हमारे लिए
तो देखते ही रहे क्यूँ उतर नहीं गए हम