भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उनका हरेक बयान हुआ / गौतम राजरिशी

Kavita Kosh से
Gautam rajrishi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:28, 28 सितम्बर 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उनका एक बयान हुआ
दंगे का सामान हुआ

कातिल का जब भेद खुला
हाकिम मेहरबान हुआ

कोना-कोना चमके घर
वो जबसे मेहमान हुआ

बस्ती ही तो एक जली
ऐसा क्या तूफ़ान हुआ

प्यास बुझी जब सूरज की
दरिया इक मैदान हुआ

उनका एक इशारा भी
रब का ज्यूँ फ़रमान हुआ

जब से हरी वर्दी पहनी
ये दिल हिन्दुस्तान हुआ

{दैनिक हिन्दुस्तान}