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उनको कहाँ पता था / शैलेन्द्र शान्त
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गर्वित थे
सीख कर हुनर
डूब-डूब कर
ख़ूब-ख़ूब
करते हुए भरोसा
हाथों के हुनर से
नहीं बढ़ता है देश आगे
पीछे छूट जाता है
उनको कहाँ पता था
कि जब आता है विकास
तो बदल जाता है मतलब
हास-परिहास का
उनको कहाँ पता था
हास को हंस के पंख लग जाते हैं
हाथ पर धरे हाथ
बैठे तकते हैं
सुनी आँखों से आकाश
हुनरमन्द हाथ
और उनकी तरफ
ईश्वर भी नहीं देखता
पलट कर
उनको कहाँ पता था।