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उनको भला हम क्या कहें जो सोचते नहीं / डी. एम. मिश्र

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उनको भला हम क्या कहें जो सोचते नहीं
उनकी ज़ुबान गिरवी है वो बोलते नही।

हम चाहते हैं प्यार हमारा रहे अमर
अपनी सलामती की दुआ मांगते नहीं।

दो पल की जिंदगी है ये हँसकर गुजार दें
हम फूल हैं इसके सिवा कुछ जानते नहीं।

इन्सानियत की देते वो ज़्यादा दुहाइयाँ
इन्सान को, इन्सान ही जो मानते नहीं।

चलते हुए हम आ गये हैं किस मुकाम पर
बिल्कुल नयी जगह है जिसे जानते नहीं।