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उबारता उजियारे तुम्हारे / मालचंद तिवाड़ी

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अथाह अंधकार में
तुम मेरे हाथ लगी
सुलगी मंद्र आंच
निपट भोली-भाली मोमबत्ती ।

अथाह अंधकार
अभी तक बढ़ता जा रहा हूं मैं
उबारे हवा से तुम्हारी जोत
उबरता खुद उजियारे तुम्हारे
पैरों लिपटती विपदाओं से !

अनुवादः नीरज दइया