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उभयचर-11 / गीत चतुर्वेदी

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जो अमृत पिया उन्होंने उसका असर देह पर होता है और स्मृतियों पर
स्मृतियां बग़ीचों में रहती हैं और तहख़ानों में और नाबदानों में और दस्तानों में देह जबकि कहीं नहीं रहती सिवाय पिंड और ख़ुद-ख़ानों में
उनकी देह वैसी ही रही जैसी वे चाहते थे और स्मृतियां अक्षुण्ण
हर ब्रह्मांड में ग्यारह शिव होते हैं इतने ही विष्णु इतने ही ब्रह्मा
और छोटे देवी-देवता मिडिल मैनेजरों की तरह इफ़रात में
मृत्यु ब्रह्मा की बेटी है स्मृति भी दोनों ने क्षमा किया इन सबको फिर भी क्षमा न किया
कुछ अभिशाप छद्म-वर होते हैं जैसे कुछ वर होते हैं छद्म-अभिशाप
यानी मृत्यु इन सबकी होती रहती है कल्पांत में बस मरने के बाद ये फिर जी जाते हैं ठीक वही देह पाते हैं
और इनकी स्मृतियां भी विलुप्त नहीं होतीं पूर्वजन्मों की
इतने जन्मों के बाद भी शिव भूल पाते होंगे विष्णु के हाथों अपनी पराजय और मोहिनी के पीछे की अपनी लालसा से गतिवान दौड़
विष्णु अपने अवतारों के सभी कामों का स्पष्टीकरण ख़ुद से दे पाते होंगे या क्षीरसागर के दुर्लभ एकांत में शर्मिंदा होते होंगे
न भूल पाने के अभिशाप से ग्रस्त ये अमर देव रुआंसे कभी झुकते होंगे ब्रह्मा की बेटी स्मृति के चरणों में
और कहते होंगे- लौट जा ओ स्मृति, अब तो महापराक्रमी मेरे शारंग धनुष ने भी अपनी टंकारों को भूलना शुरू कर दिया
चेयरमैनों-मैनेजिंग डायरेक्टरों-राष्ट्राध्यक्षों की तरह काम से ज़्यादा मनोरंजनों में व्यस्त लगातार
अदना कर्मचारियों को उनके पहले नाम से पुकारते याद के ये धनवान
उन वादों को हमेशा भूल जाते जो उन कर्मचारियों से किए थे उन्होंने मंझोले देवों से निरीह भक्तों से आस में डूबी शाकों से
सुनसान में हज़ारों बरसों से खड़े पेड़ों से जो अपनी बेनूरी में भी हरे से भरे हैं
हिंदी के पो-बिज़ में हमेशा दुत्कारे जाने को अभिशप्त कुछ विषयों बिम्बों रेटरिक जैसे
उनके वादों को क़दमताल पर गुनगुनाना छोड़ो वे हारे हुए अपनी अमरता से
पेड़ो, सावधान हो जाओ तुम्हें हरा रखने की जि़म्मेदारी अब कॉर्पोरेट्स ने ले ली है