भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उभयचर-17 / गीत चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:56, 5 अप्रैल 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गीत चतुर्वेदी }} {{KKCatKavita‎}} <poem> मुझे नहीं पता कौन गा र…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे नहीं पता कौन गा रहा था
मैं सुरों आलाप ठेके और ताल के बीच अनियमित पदचाप सुन रहा था
जैसे काफ़्का को घबराहट होती थी प्राग की ज़मीन के नीचे कोई चलता रहता है लगातार
और चीज़ों से टकराता है उसका पैर तो ख़तरनाक आवाज़ होती है
मैं मेड़ों पर चुपचाप चल रहा था
गाने की आवाज़ सदियों पुराने एक अतीत से आ रही थी
यही अहसास क्या कम सुखद था कि अतीत में गाना भी था
यह एक दिन मेड़ों पर चुपचाप चलते हुए जाना मैंने
क्या फ़र्क़ पड़ता है कि कौन गा रहा था फ़र्क़ इससे है कि गाना था