भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उभयचर-27 / गीत चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:01, 5 अप्रैल 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गीत चतुर्वेदी }} {{KKCatKavita‎}} <poem> हम आपातकाल की संतान ह…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम आपातकाल की संतान हैं सन 75 से 77 के बीच जन्मे हम उभयचर जो
निरंकुशता का अमूर्तन अपने भीतर ले चलते रहे सदा अराजक घोड़ों की तरह ज़मीन के उबडख़ाबड़पन को नकारते
जितना विरोध करते समझौतों के लिए भी उतना ही ख़ुद को उपलब्ध बता देते
सफलताओं का निषेध कर हम असफलता की कामना करते
और एक दिन अपनी कला में व्यवहार में प्रश्नों में जीवन में उत्तर-जीवन में घर में परिवार में बाज़ार और व्यापार में
ख़ुद को असफल घोषित कर देते
उस क्षण कोई हमें याद न दिला पाता हमने जिसकी कामना की उसे पा लिया यह सफलता से अलग और क्या है
जब हम कहते दुख है हमें हमारे भीतर आग की कई लघुकथाएं हैं जो उपन्यास बनने से इंकार करतीं लगातार
वह कौन-सी नस बंद कर दी थी कि बच्चे तो पैदा हो रहे थे जो
बरसों बाद भी जब साथ आते मुट्ठी जैसी उपस्थिति न बना पाते
विभिन्न समयों में करते रहे लोलक की तरह दोलन आंदोलन की आवश्यकता को दुहराते बुज़ुर्गों संग
हमें कोई बता नहीं पाता कि नसबंदी के तमाम अभियानों के बावजूद
अपने परिवार में पांचवीं-छठी संतान थे हम
हमारा गर्भाधान बार-बार दुहराई एक भूल के तहत हुआ था या एक सुनियोजित उत्तेजक राजनीतिक विरोध के कारण?