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उभयचर-6 / गीत चतुर्वेदी

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उसी भीड में वे औरतें भी थीं जिन्हें चंगेज़ ख़ान अपने साथ भगा ले गया था जिन्हें इल्तुतमिश ने नगर की सीमाओं से बाहर खदेड़ दिया था जो अखाड़े में लड़ता देख कृष्ण को रीझी थीं जो बैबल की लाइब्रेरी से किताबें चुरा रोटी ख़रीदा करती थीं जो सड़कों पर नंगी थीं और शयनकक्षों में भी जिन्हें सड़क किनारे पा ट्रकवाले पैंट की जि़प खोलकर दिखाया करते थे पोलियो की शिकार वह किशोरी भी जिसे उसके एक परिजन ने ही गर्भवती कर दिया था। वहां रेल की पटरियों के किनारे बैठ निपट रही थीं औरतें। जब तेज़ी से गुज़रती कोई लोकल धड़ाधड़, वे उठ तुरंत खड़ी हो जातीं। सिग्नल न मिलने पर कोई लोकल अगर वहीं खड़ी हो जाए कुछ देर, तो वे औरतें भी उसी तरह इंतज़ार में खड़ी रहतीं। दूर बिना किसी ओट के बैठे पुरुष कभी खड़े नहीं होते थे। जिनके सामने लेडीज़ कोच आकर लग जाता, वे शर्माते, यहां-वहां देखते, तुरंत निपटकर चले जाते, तो कोई ऐसा भी होता, जो रगड़-रगड़कर तान लेता अपना लिंग। मेरी ट्रेन ऐसी जगहों से भी गुज़री, जहां पटरी के किनारे बने थे वेश्यालय। द्वार पर बैठी वेश्याएं लोकल से लटके लौंडों के इशारे पढ़ा करतीं। एक बूढ़ी हो रही वेश्या गोद में बैठी एक जवान लड़की के बाल काढ़ रही होती। हाफ़ पैंट पहना दो साल का एक बच्चा पीछे मिट्टी में खेल रहा होता, दूसरा रो रहा होता और तीसरा बार-बार लोकल के पहियों की तरफ़ बढ़ जाता, जिसे दौड़कर पकड़ती हमेशा एक ही औरत। एक स्त्री और पुरुष हिंसक तरीक़े से लडऩे लग जाते। एक नौजवान मग्गे से पानी उंड़ेल मोटरसाइकिल का टायर धोता। वाटर सप्लाई की टूटी पाइप से निकलते पानी से नहा रही होती एक औरत, पूरे कपड़े पहन। मेरी ट्रेन वीटी पर जाकर ख़त्म हो गई, जहां से मुझे बाहर सड़क पर निकल जाना था। वहां फोर्ट की दुकानों के सामने सुंदर लड़कियां किसी का इंतज़ार कर रही थीं। दुकानवाले एक बार माल देख जाने को बुला रहे थे। मेरी एक दोस्त एक बार बहुत रोई थी, मैंने उसे वीटी के सामने इंतज़ार करने के लिए कह दिया था। वह आधा घंटा वहां खड़ी थी और उतने में तीन बार उससे पूछा था अलग-अलग लोगों ने- चलती क्या? रोते हुए कहा था उसने मुझसे- तुम्हें इंतज़ार कराने की जगह चुनने की भी तमीज़ नहीं! मैं ट्रेनों से बहुत थका हुआ उतरता, बहुत थका हुआ ही चढ़ता था ट्रेनों में। घर आकर बिस्तर पर पसर जाता। टीवी में एक औरत कपड़े उतारती, एक खंभा पकड़कर नाचती, एक अपने वक्षों को इतनी तेज़ी से हिलाती कि उनके टूटकर गिर जाने का डर लगता। जेनेसिस ने बताया मुझे कि ईश्वर ने मिट्टी से बनाया आदम का पुतला, उसके नथुनों में हवा फूंक प्राण दिया उसे, फिर उसकी एक पसली तोड़ी और उससे बनाई दुनिया की पहली औरत। किसी ने नहीं बताया मुझे कि ईश्वर के पास मिट्टी कम पड़ गई थी क्या ईव को बनाने के लिए?
प्लेटफ़ॉर्म पर किताबों में सिर गड़ाए बैठी हैं कुछ। ये कवियों के प्रेम की शिकार महिलाएं हैं जो ख़ूब किताबें पढ़ती हैं और रोते-रोते कवियों को गालियां दिया करती हैं।