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उमंग / केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’

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सागर-सा उमड़ पडूं मैं
लहरें असंख्य फेलाकर
विचरूं झंझा के रथ पर
मैं ध्वंसक रूप बनाकर।
मैं शिव-सा तांडव दिखलाऊं
मैं करूं प्रलय-सा-गर्जन
बिजली बनकर तड़कूं मैं
कांपे नभ अवनी निर्जन।