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उल्लू मियाँ / शेरजंग गर्ग

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उल्लू मियाँ, उल्लू मियाँ,
क्यों बन्द कर दीं खिड़कियाँ?

कितनी मधुर है रौशनी,
है धूप सोने-सी छनी।

हर ओर जीवन दीखता,
पर तू न हँसना सीखता।
खाता हमेशा झिड़कियाँ,

उल्लू मियाँ, उल्लू मियाँ,
क्यों बन्द कर दीं खिड़कियाँ?