भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उस दिन के लिए तैयार रहना / कविता किरण

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:53, 3 अक्टूबर 2016 का अवतरण (कविता)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम पूरी कोशिश करते हो
मेरे दिल को दुखाने की
मुझे सताने की
रुलाने की
और इसमें पूरी तरह कामयाब भी होते हो---
सुनो!
मेरे आंसू तुम्हे
बहुत सुकून देते हैं ना!
तो लो..
आज जी भर के सता लो मुझे
देखना चाहते हो ना मेरी सहनशक्ति की सीमा
तो लो..
आज जी भर के
आजमा लो मुझे
और मेरे सब्र को
पर हाँ!
फिर उस दिन के लिए तैयार रहना
कि जिस दिन मेरे सब्र का बाँध टूटेगा
और बहा ले जायेगा तुम्हे
तुम्हारे अहंकार सहित इतनी दूर तक
कि जहाँ तुम
शेष नहीं बचोगे मुझे सताने के लिए
मेरा दिल दुखाने के लिए
मुझे आजमाने के लिए
पड़े होंगे पछतावे और शर्मिंदगी की रेत पर
अपने झूठे दम्भ्साहित
कहीं अकेले--
उस दिन के लिए
तैयार रहना--
तुम!