भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उसने लगाई ऐसे मेरे दिल पे गहरी चोट / सादिक़ रिज़वी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:09, 7 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सादिक़ रिज़वी }} {{KKCatGhazal}} <poem> उस ने लगाई...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उस ने लगाई ऐसे मेरे दिल पे गहरी चोट
ता उम्र अच्छी हो न सकी बेवफा के चोट

वादों के लफ्ज़ दिल की टहोकों की ज़द में थे
रह रह के जहने दिल को जो पहुंचा रही थी चोट

होकर असीर इश्क़ में ली लज्ज़ते शबाब
आज़ाद कर के उस ने दिया बेकली की चोट

दुश्मन को भी ख़ुदा न दिखाए कभी वह दौर
जिस तरह राहे इश्क़ में आशिक़ ने खाई चोट

अहदे वफ़ा की तुमने वह क़समें भी तोड़ दीं
इक़रार पर जो रहते तो दिल पर न पड़ती चोट

आँसू भी ख़ुश्क हो गए वीरान आँख के
उस बेवफा की याद को दफना के भर दी चोट

'सादिक़' था कामयाब मोहब्बत की राह में
दिल पर लगी तो अहले जहाँ ने न देखी चोट