भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उसी को आज यहाँ मिल रही सफलता है / उत्कर्ष अग्निहोत्री

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:02, 27 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उत्कर्ष अग्निहोत्री |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसी को आज यहाँ मिल रही सफलता है,
जो शख़्स रोज़ ही चेहरे नये बदलता है।

तेरे विशय में कहूँ तो भला कहूँ कैसे,
मैं जब भी देखूँ तो पहलू नया निकलता है।

जगत की पीर जो गाता हो अपने गीतों में,
उसी के कण्ठ से अमृत सदा निकलता है।

कुछ इस तरह से जीता रहा वो मन्दिर में,
कि जैसे मृत्तिका का कोई दीप जलता है।

सभी के सामने ये कह भी मैं नहीं सकता,
वो आईना भले है किन्तु सबको छकता है।

न उससे पूछिए उपचार के विशय में कभी,
वो सर्प है वो सदा ही गरल उगलता है।