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एक कोई तीर अब ऐसा लगाना चाहिए / शिवशंकर मिश्र
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एक कोई तीर अब ऐसा लगाना चाहिए
जो लगे दिल पर कोई ऐसा निशाना चाहिए
अब नहीं जंगल, नहीं अब बाघ-चीते ही मगर
आदमी को आदमी से अब बचाना चाहिए