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एक खिड़की खुली है अभी / नरेन्द्र मोहन

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एक ही राह पर चलते चले जाने और
हर आंधी से ख़ुद्को बचाते रहनेकी आदत ने
आख़िर मुझे पटखी दिया
उस अजीबो-गरीब हवेली में
बंद होते गएजिसके
बाहरी-भीतरी दरवाज़े एक-एक कर
मेरे पीछे

घुप्प अंधेरे में
देखता हूँ