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एक गीत सुनावत हंव / नूतन प्रसाद शर्मा

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एक गीत सुनावत हंव, एक गीत सुनावत हंव।
सबले हटके थोरकुन, मंय बात बतावत हंव।

मोर गीत मं बनवारी के, नइहे बंसुरी के आवाज,
एमां रोना हे, गरीब के, जेन रखे हे देस के लाज।
का खाथे का पीथे ओढ़त, देखे ला जावत हंव।

ओ राधा गगरी मं पानी, बस अपने घर बर ले आय,
ए राधा के गगरी के जल, सब झन पी के प्‍यास बुझाय।
एकर धरम के आगू मं मंय, मुड़ी झुकावत हंव।

ओ सीता हा पति संग जा के, दहपट बन मं दुख अमरैस,
ए सीता हा पर के दुख ला, देख के आंसू ला छलकैस।
एकर करलई देख के मंहू हा, आंसू ढारत हंव।

राम लख्‍ान मन राजभवन मं, खेल करिन हें करके नेह,
ए नान्‍हें मन खोर मं किंजरत, चिखला ला चुपरत हें देह।
इंकरे संग माटी लददी मं, मंहू बोथावत हंव।

मोर गीत मं राजा - रानी नइये कोनो कथा महान,
एमा उंकरे गाथा हवै, जेहर ए मजदूर किसान।
ओ किसान के धुर्रा ला मंय मुड़ी मं नावत हंव।