भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक चाहत आसमान भर / संजीव बख़्शी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:27, 14 अगस्त 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= संजीव बख़्शी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> एक चिड़िया गोल-…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक चिड़िया
गोल-गोल आँखों से
गर्दन घुमा-घुमा
देखती है एक हेलिकोप्टर को ।

देखती है
उसमे ईंधन का डालना,
पायलट का स्विच आन करना,
और गड़गड़ाहट के साथ
बड़े-बड़े पंखो का घूमना
क्षण भर में
हेलीकाप्टर का हो जाना ओझल
उसकी आँखों से ।

देखती है यह, वह चिड़िया,
जाती है पोखर
चोंच भर पीती है पानी,
दो गुनी रफ़्तार से उड़ जाती है
आसमान की ओर फुर्र....।