भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक झुर्री चन्द सफ़ेद बाल और आइसोटोप-2 / तुषार धवल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:50, 13 फ़रवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुषार धवल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक छिटकी हुई जिजीविषा जो विषय हो सकती है
सृजन के शोध का, शोध के सृजन का इस व्यवस्था में बेवा हुई कल्पनाओं का आत्मदाह
अनुराग नहीं था
उनकी आह मेरे चेहरे पर दरारें खींचती है अपने होने का इतिहास लिखती है जिसे
डॉ. आदिल गाबावाला तुम “Sleeplessness” कहते हो
यह अनिद्रा नहीं जागे रहने की ज़िद है
बहुत कुछ था जिसे होना था
पर
जो नहीं हुआ
नहीं हो सका

समझौता
बस यूँ ही हो कर नहीं रह जाता डॉक्टर !
वह हर वक़्त अपना हिसाब लेता है.
मुफ़्त कुछ भी नहीं है शिव तुम्हारे संसार में, ख़ुद तुम भी नहीं !

इन नींदों को कोई खा रहा है नेपथ्य से
मजूरी कर के लौटा फकीर रात की बागबानी करता है
जटिल सितारों के समूह गान में अपना स्वर उछालता है कि शब्द मेघ हों एक दिन धरती पर बरसें
टूटें तप्त उल्काओं से मिस्र साइप्रस वियतनाम में लड़ें हिरोशिमा के मृतकों का आख़िरी मुक़्क़म्मल मुक़दमा तियानमेन चौराहे पर
उसके काम की फेहरिस्त नहीं रुकती उसे बहुत चलना है अभी नंगे पैर बहुत दूर तक
वही सो जाएगा तो जागेगा कौन ?

चालीस बीत गए और अब उससे कुछ कम बचे हैं उसी में होना है उसे पूरी दखल से
वह बुलबुला नहीं है सतह के विलास का
वह काल की खोपड़ी में तिरछी धँसी एक कील है
तुम्हारा चाँद टूटे काँच का टुकड़ा है

वही सो जाएगा तो जागेगा कौन ?

होना तो बहुत कुछ था डॉक्टर जो नहीं हुआ
पर यह रसायन ही ऐसा है !